" जरुरी नहीं कि इन्सान प्यार कि मुरत हो ,
सुन्दर और बेहद खुबसुरत हो , अच्छा तो वही इन्सान होता है ,
जो तब आपके साथ हो ,जब आपको उसकी जरुरत हो।"
सुन्दर और बेहद खुबसुरत हो , अच्छा तो वही इन्सान होता है ,
जो तब आपके साथ हो ,जब आपको उसकी जरुरत हो।"
मुस्कान संस्थान के सचिव भरत नागदा का भी कुछ ऎसा ही सोचना है की इन्सान खुबसुरती से नही अपने कर्मो से महान होता है इन्सान जैसे कर्म करता है वैसे ही फलपाता भी मिलता है।
श्री नागदा ने अपने जीवन में गरीब, बेसहारा,अनाथ पीड़ित वृद्ध लोगो कि सेवा करने को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया और इन बेसहारो का सहारा बनने की ठानली
यह वृद्ध जिसका नाम दशरत है वो इस संस्थान को सड़क के किनारे मिला था तब उसे देख कर इन्सानियत की रूह काप जाती है, कि क्या कोई इंसान इस तरह भुख प्यास और बीमारी में इस
तरह तड़पता है। इस वृद्ध को जब संस्थान के सचिव ने देखा तो उनसे रहा नही गया और उसे अपने हाथो से उठा कर अपनी संस्थान में लाये और इनका इलाज करवाया उसके रहने खाने की सुविधा की इस तरह गरीब वृद्ध दशरत की सेवा करने लगे।
सेवा ही कर्म है, सेवा ही धर्म
सेवा वीरो का आभुषण
सेवा नर को नारायण बनाये
सेवा है पुण्य का अर्जन
सेवा है मानवता ,सेवा ही प्यार है
सेवा है संस्कार ,सेवा ही आस्था
सेवा है विश्वास ,सेवा ही समर्पण
सेवा ही है तन मन धन
सुधीर जैन
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