कर्म हो दान ,कोई छोटा बड़ा नही होता।  दुसरो की  सेवा करना असहायों को  सहारा देना ,मानवीय दृष्टी से बहुत बड़ा कार्य है। आपके द्वारा कि गई सेवा से यदि किसी को सुख मिलता है , आराम और शांति मिलती है ,तो वह ईश्वर की पूजा सुख मिलता है , आराम और शांति मिलती है , तो वह ईश्वर की पूजा ओर आराधना है ,क्योंकि  जिस जीव को आपकी सेवा से राहत ओर सुख की  प्राप्ति होती है ,वह जीव परमपिता परमेश्वर का ही  अंश है   
असहाय और पीड़ित जन की  सेवा किसी भी रूप में की जा सकती  है। तन, मन, धन, वाणी से और कुछ नही तो अपनी मुस्कान भरी सांत्वना भी दुःख पर  मरहम सी कारगर सिद्ध हो सकती है। 
        यह सिद्धांत की बात है कि जब समाज सुखी रहेगा तभी हम भी  सुखी रह सकते है। आदर्शो के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं। 
     यदि हमने केवल अपने ही सुख को देखा तो समझो दुःख भी हमारे सन्निकट है। 

सब के मन में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से किसी किसी रूप में अंशदान कि भावना रहती है। सभी उसके लिए सूत्रपात की तलाश में रहते है। मुस्कान एक ऐसी संस्थान है जो हम सबसे करीब है।  आप स्वयं देख सकते है एवं "स्वान्तः  सुखाय " की अनुभूति के साथ संतोष प्राप्त कर सकते है।    

Comments

Popular Posts